बर्बादी

सोशल मीडिया पर जन्मदिन मनाने का एक गजब का ट्रेंड (दौर) चल पड़ा है। लोग केक लेते हैं , जन्मदिन पर उसे काटते हैं, और फिर उसे खाते नहीं उसे जन्मदिन वाले व्यक्ति को लगा देते हैं, चुपड़ देते हैं।

साथ ही बोटल भर बियर, पेप्सी ,पानी, या किसी 'स्प्रे' से जन्मदिन वाले व्यक्ति को नहला-धुला देते हैं, अंततः उसे पूरी तरह बागड़बिल्ला बना देते हैं और सोचते हैं यह तो बहुत पागलपन कर लिया हमनें, इस तरह से केक चुपड़ना तो इसे "आजीवन याद रहेगा "।

हालांकि इसके लिए कोई पाबंदी नहीं है ,"हम अपनी खुशियां चाहे जिस रूप में मनाएं"। दोस्तों आप सोच रहे होंगे कि 'ये लो , ये बड़बड़ा फिर शुरू हो गया'।

पर यकीन करिए मैं कतई आप लोगों के द्वारा बनाई गई इस प्रथा को बंद करने या अंकुश लगाने के बारे में नहीं सोच रहा हूँ, अब भाई खुशियां मानाने के तो सबके अपने-अपने तरीके हैं।

और सही भी है , कोई इस तरह का ज्ञान-गणित हमको देगा तो ऐसे ही थोड़ी न सुन लेंगे हम किसी की, वैसे किसी के रोकने पर हम सबके मन में ये कुछ प्रश्न उठना तो वाजिब ही है न, के यार 'हमारे पैसे' , 'हमारे व्यक्ति का जन्मदिन', 'हम जो चाहे वो करें', और "इससे किसी को क्या"?

किसी को क्या! तो चलिए मैं आपको याद दिलाता हूँ ऐसे बच्चों की जो आपके ही शहर में रहते हैं, जिनमें से कइयों को तो यह भी नहीं पता होगा की यार ये केक क्या चीज़ है। हमें तो कुछ भी एक समय का भोजन मिल जाए बहुत है। शायद जिनमें से कइयों के जन्मदिन तो बिना खाना खाए ही निकल जाते होंगे।

"यूनाइटेड नेशन" के अनुसार भारत में करीब 20 करोड़ लोग  हर रोज भूखे पेट सोने के लिए मजबूर हैं। (यू.एन) के आंकड़ों की माने तो यहाँ चार में से हर एक बच्चा भूखा रह जाता है।

सीरिया , यमन, वेनेजुएला और आधे से ज्यादा अफ़्रीकी देश भी भोजन की अपर्याप्तता की मार झेल रहे हैं। हमारी हिंदुस्तानी संस्कृति तो अन्न को ब्रम्ह के सामान मानती है, यहाँ माता अन्नपूर्णा की पूजा की जाती है।

भोजन ग्रहण करने से पहले उसकी भी पूजा की जाती है। इसे एक पावन भावना से जोड़ा गया है। तो इस प्रकार भोजन की बर्बादी बहुत हद तक आप लोगों को भी, उन मासूमों की मौत का जिम्मेदार बनाती है, जिनकी मृत्यु भोजन की अपर्याप्तता से हो गई है। ऐसे में अन्न का हर एक दाना जो किसी भी व्यक्ति के जीवन को बचा सकता है, उसे बर्बाद करना ,उस अन्न का ही नहीं बल्कि इंसानियत के साथ भी भद्दी नाइंसाफी है।

विडम्बना तो यह भी है साहब की आज बारिश होने पर क्रिकेट के मैदान को तो तुरंत ढक दिया जाता है, परंतु हज़ारों टन अनाज को मंडियों के बहार यूँ ही सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। यह ऐसा अनाज है, जिससे भूखमरी बहुत हद तक कम की जा सकती है। परंतु मैं यह नहीं समझ पाता की तब कहाँ जाती है यह दिखावे की दुनिया?

यह सच है के दिखावे की इस दुनिया में भारतीयों ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है। जहाँ कभी थाली में जूठन छोड़ना भी अन्न का अपमान समझा जाता था। अब वहीं ये सांस्कृतिक भावना प्रभावहीन होती नजर आ रही है।

शादी पार्टी या सामुदायिक समारोह में भी भोजन की बर्बादी कोई नई बात नहीं है, अब तो भोजन में दिखावे के खातिर लोग बर्बादी की हद पार कर देते हैं। खाद्य सुरक्षा एवं भण्डारण पर तो मैं पहले भी अपनी चिंताएं व्यक्त कर चुका हूँ।

गौरतलब है कि फ्रांस में नए नियम के तहत खाना फेंकने पर प्रतिबंध लगाया गया है। नए नियमों के अनुसार सभी फूड मार्केट अपने यहां बचे हुए भोजन को जानवरों या खाद बनाने के लिए दान में देंगे।
भारत में भी बहुत से ऐसे (एन.जी.ओ) है, जो भोजन को सुरक्षित बचा कर इसे जरूरत मंदों तक पहुंचने का सराहनीय कार्य कर रहे हैं।
अतः आप फिर एक बार स्वतंत्र है यह सोचने के लिए की क्या आपकी यह नई प्रथा वाकई इंसानियत से कोई वास्ता रखती है। आज भोजन में भारतीय प्राचीन मूल्यों का तथा जनसामान्य का पुनः जागरूक होना नितांत आवश्यक हो गया है।

Comments

  1. अन्न की बर्बादी पर आपका यह लेख सराहनीय है। उम्मीद हे आपके इस प्रयास से लोग जागरूक बने एवं अन्न की बचत के प्रति गंभीर रहे।

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  2. He isah nigga who is spreading love from his posts

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