हमला

इंसानियत पर हुए हमलों में मैंने फिर एक भयावह दृश्य देखा। पागलपन की हद का फिर एक नया रूप देखा, आतंक की राह पर चलने वाला हर एक बेहुदा व्यक्ति यही सोचता है कि मासूम लोगों को मार कर वो जन्नत जा सकेगा और जिन्हें वो आत्मघात करते हुए मार रहा है, उन्हें वो नर्क भेज रहा है।

वाह, कितना सही इन्साफ है , अगर ऐसा है तो मरने वालों में छोटे बच्चे भी शामिल हैं जो स्वयं अल्लाह का रूप हैं, और स्वयं अल्लाह को तुम नर्क भेज सको इतनी तुम्हारी औकात नहीं। हालांकि तुम जैसे तुच्छ आत्मघाती, भला कैसे अल्लाह को या जन्नत को समझ सकते हैं, क्योंकि जिस तरह की तुम्हारी सोच है और कर्म है, वो अल्लाह तुम्हें कभी मिलेगा ही नहीं, और जन्नत भी तुम्हें कभी नसीब नहीं होने वाली।

ये कैसे हो सकता है कि इन मौतों का किसी को कोई फायदा ही न हो। ये हमारे बीच से ही निकल रहे हैं इस तरह की बर्बादी फ़ैलाने के लिए , फिर से किसी धर्म का नाम ख़राब करने के लिए, फिर किसी मजहब से लोगों का विश्वास  उठाने के लिए , उन सबको बर्बाद करने जो ईश्वर के नाम से एक सीधी राह पर चल रहे हैं। पर ऐसा कभी संभव नहीं होगा , इनके नापाक इरादों को कभी बख्शा नहीं जाएगा और इसके लिए विश्व के सभी देशों को एक जुट होना ही होगा। 

हालही में श्री लंका में हुए आत्मघाती हमलें में लगभग 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और 500 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। ये हमला ईस्टर के दिन हुआ है, माना जाता है ईस्टर के दिन प्रभु यीसु फिर जीवित हुए थे। श्रीलंका में आठ जगहों पर एक के बाद एक आत्मघाती हमले हुए हैं। जिसने मानव जाति की कुत्सित सोच को सबके सामने रख दिया।

दक्षिण एशिया में इन हमलों का ये सिलसिला कोई नई बात नहीं है,  26-11-2008 को (मुंबई), 16-7-2018 को बलूचिस्तान (मस्तंग), 31-5-2017 में (काबुल) में हमले हुए हैं, जिसमें भारत के पुलवामा हमले ने भी पूरे देश की आँखों को नम कर दिया था। 

भारत, पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और अब श्रीलंका, अगर संसार के समस्त देश इस वक़्त एक जुट नहीं होते हैं तो याद रखिए कि आज हमारे लोग मरे हैं और अगर इन कुछ कुत्सित संगठनों पर नकेल नहीं कसी गई तो शायद कल आपके भी लोग इन हमलों के शिकार हो सकते हैं। इस मुश्किल भरे दिनों में भारत का हर एक नागरिक श्रीलंका के पीड़ित लोगों के साथ है। ईश्वर उन पीड़ित लोगों को यह भीषण कष्ट सहने की शक्ति दे।

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