प्रेम
महरूनी रंग का सूती चोला मन पर ओढ़ना पड़ता है ।
यदि प्रेम सीखना हो तो यारों अनपढ़ होना पड़ता है ।
हिम सा शीतल बन कर कभी साँसों को जमाना पड़ता है ।
कभी हाथों की लकीरों पर शोला भड़काना पड़ता है ।
बर्फ के गोले की , रस भरी , रेखाओं से पूछो तुम ।
कुछ खट्टा - कुछ मीठा सा अहसास जगाना पड़ता है ।
ये लड़ता है , झगड़ता है , कुछ अपने ही दिल की करता है ।
यहाँ पर "टॉम और जैरी" जैसा ये रिश्ता अपनाना पड़ता है ।
है यह मार्ग बड़ा विचल , यहाँ बवंडर सबके अपने हैं ।
के आंधी से जो आँख मिलाए वो जोग जगाना पड़ता है ।
ये है बहुत आसान, तो कठिन इससे ज्यादा कुछ भी नहीं ।
इसमें राग-द्वेष की सीमा से भी पार हो जाना पड़ता है ।
महरूनी रंग का ......1
#100रब
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