गलती मेरी ही थी ।

गलती मेरी ही थी, जो पानी से आग मांग बैठा।
गलती मेरी ही थी, जो वरदान में श्राप मांग बैठा।

गलती मेरी ही थी,जो तेरी छवि कभी मिटा ही न पाया।
गलती मेरी ही थी,सोचा प्यार मिले न मिले साथ है,तो तेरी छाया।

गलती मेरी ही थी,जो कालांतर में भी तुझे ढूंढने की ख्वाहिश नही खोई।
गलती मेरी ही थी,सोचा खोज लिया अब तुम्हें तो अब कैसे खो जाओगे।

गलती मेरी ही थी,जो दूर रह कर भी यादों में बसाया रहा तुझे।
गलती मेरी ही थी,जो मिलने के बाद भी नही मिल पाया तुझे।

गलती मेरी ही थी,जो तेरा हाल पूछ बैठा, मुझे क्या पता था,की ये खुद से एक सवाल पूछ बैठा।
गलती मेरी ही थी,जो तेरी बेज़्ज़ती में इज़्ज़त खोजने का प्रयत्न किया।
गलती मेरी ही थी,जो हर वक़्त तुझसे मिलने का इतना जतन किया।
पर
अब इन गलतियों का पश्चाताप  करना चाहता हूँ।
जो माँगा लिया है श्राप, उसे आत्मसात करना चाहता हूँ।

जा,
जो गलती की मैंने आज उसे स्वीकार किया।
अब गलती से भी गलती नही होगी
क्योकि मैंने तुझे प्यार किया।

हाँ,गलती मेरी ही थी।

©100urav_indori

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