जल अभियान


मृगतृश्निकाः   ततः    महोदधिः।
महोदधिः  ततः मृगतृश्निकाः च।

अरल सागर का उदाहरण देते हुए , यह संस्कृत वाक्य लिखा गया है। बीते 50 सालों में विश्व की चौथी सबसे बड़ी झील अरल सागर धीरे-धीरे रेत के ढेर में तब्दील हो रही है। उससे जुड़ने वाली कुछ मुख्य नदियों का या तो रास्ता बदल दिया गया या मार्ग में बाधा उत्त्पन्न कर झील में मिलने से रोक दिया गया फलस्वरूप अब वहां कुल क्षेत्र का मुख्यतः 10% जल ही शेष रह गया है। यह पर्यावरणीय विपदा का एक भयानक रूप है।

ये तो रही जल के सूखने की बात अभी हाल ही में आपने यह सुना होगा की इंडोनेशिया अपनी राजधानी बदलने पर विचार कर रहा है।वहां की सरकार ने उसके दो मुख्य कारण बताए हैं।

एक तो अत्यधिक ट्रैफिक और दूसरा वहां के समुद्री जल स्तर में निरंतर वृद्धि का होना। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता दलदली क्षेत्रों से घिरा हुआ है। अमेरिका की कोलोराडो यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में जारी रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग के चलते 2030 तक पृथ्वी के तापमान में लगभग 2 से 3 डिग्री तक की वृद्धि हो जायेगी फलस्वरूप ध्रुवों पर जमी बर्फ पिघलेगी और समुद्री जल स्तर में लगभग 20 से 30 फिट तक की वृद्धि हो जायेगी जिससे समुद्र किनारे बसे संसार के बहुत से शहरों पर डूबने का खतरा बहुत अधिक बढ़ जायेगा। जारी की गई सूची में भारत के भी दो मुख्य शहर मुम्बई और विशाखापत्तनम शामिल हैं।

यह तो तय है कि मानव को प्रकृति के साथ छेड़छाड़ के बहुत ही भयावह परिणाम भुगतने पड़ेंगे। कभी-कभी मैं यह नहीं समझ पाता की करोड़ों अरबों डॉलर खर्च कर ये लोग दूसरे ग्रह में जीवन खोजने की कोशिश किया करते हैं। अगर ये इतना ही ध्यान अपनी पृथ्वी की रक्षा में लगा दें तो शायद पृथ्वी के वारे न्यारे हो जाएं। अगर किसी ग्रह पर जीवन खोज भी लिया जाये तो शायद वो जीवन नहीं खोज जाएगा, हाँ वो उस ग्रह की मृत्यु ही खोजी जाएगी। ऐसा क्यों ? इसका सबसे अच्छा उदाहरण हमारी पृथ्वी ही है।

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