अमेज़न की आग
"
नैन मीचे जो मैं देखूँ जग को,
मन कहे हियाँ सब ,बाग़-बाग़ है।
जो नेत्र खोल जग देखूँ , पल में,
रह गया हियाँ सब ख़ाक-ख़ाक है।
"
भारतीय समाचार पत्रों में या समाचार चैनलों में आये दिन चिदंबरम की चितकबरी तस्वीरें देखने और समाचार चैनलों में वक्ता-अधिवक्ता के दंगलों के बीच वहां बीते दो हफ़्तों से सुनसान में दहकते अमेज़न के जंगलों की खबर पाना तो सच में बहुत ही मुश्किल था।
कहीं सवाल 305 करोड़ रूपए के हेर-फेर का था तो कहीं करोडों-अरबों रूपया देकर भी पाया न जा सकने वाले ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र के जीवन का था, जो अपनी आबादी से आधी दुनियां को सांस दे रहा है।
वैसे अपनी-अपनी जगह महत्वपूर्ण तो ये दोनों ही ख़बरें थी। लेकिन इनमें से एक खबर का पूरे भारत भर में शोर था तो दूसरी खबर सिर्फ चुनिंदा लोगों को ही अपनी ओर आकर्षित कर सकी है।
खैर मीडिया पर मेरे भरोसे के चलते मुझे इसकी कोई उम्मीद भी नहीं थी की भारतीय समाचार चैनल ऐसी कोई खबर दिखाएंगे भी इसलिए मैं यहाँ उस दूसरी खबर की चिंताओं के साथ उपस्थित हुआ हूँ जिसमें भले ही किसी को इस खबर की चटपटाहट न मिले, लेकिन मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ के इसे पढ़कर यहाँ आपको सत्यता की कड़वाहट जरूर महसूस होगी।
इन दोनों ख़बरों को एक साथ रखने का अर्थ यहाँ मीडिया की कार्य पद्धति पर एक सवाल तो खड़ा करता ही है साथ ही यह हमें भीतर तक सोचने पर विवश करता है के बिना जाग्रत अवस्था की इस मानव जाति ने जिस माँ प्रकृति के कोख से जन्म लिया है, यह जाति अब उसी माँ की कोख के लिए एक भीषण कर्क रोग सी बन गई है।
इसका एक उदाहरण, ब्राज़ीलियन हुकूमत के आका "जायर बोलसोनारो" की नीतियाँ भी है। उसके लिए पहले भी उन्हें कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है।
प्रकृति ने वरदान स्वरुप जिस देश पर अपनी कृपा की वर्षा उन वर्षावनों के द्वारा बरसाई थी। बोलसोनारो ने अपनी नीतियों के द्वारा उस वरदान को अब अभिशाप बनाना शुरू कर दिया है।
पृथ्वी पर स्थित सबसे बड़े उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में से एक अमेज़न के जंगलों का विस्तार लगभग नौ देशों में है। इसके अंतर्गत ब्राज़ील , बोलिविया , पेरू , इक्वाडोर , कोलंबिया , वेनेजुएला , गुयाना , सूरीनाम और फ्रेंच गुयाना आते हैं। दक्षिणी अमेरिका महाद्वीप में फैला यह जंगल " धरती के फेफड़ों" के नाम से भी जाना जाता है। आंकड़े बताते हैं कि धरती पर लगभग 20 फीसदी ऑक्सीजन इन्ही जंगलों से प्राप्त होती है।
अमेज़न के जंगलों का करीब 55 से 65 फीसदी हिस्सा ब्राज़ील देश के अंतर्गत ही आता है। अपने आँचल में अनेकों दुर्लभ प्रजातियों को पनाह देने वाले अमेज़न के जंगल हाल में भीषण आग की चपेट में रहे हैं। यह आग इतनी भीषण थी कि इसे अंतरिक्ष से भी साफ़ देखा जा सकता था।
यूँ तो छुटपुट आग का लगना वहां आम है, लेकिन बीते कुछ वर्षों में आग के इस दायरे में और उसकी आक्रमकता में दुगनी से चौगुनी बढ़ोतरी हुई है। देश के उत्तर में स्थित राज्य, रोरैमा, एक्रे, रोंडोनिया और अमेज़ोनास के क्षेत्र वहां की आग से बहुत अधिक प्रभावित हुए हैं। ब्राज़ील की अंतरिक्ष एजेंसी के आंकड़े बताते हैं कि अमेज़न के वर्षा वन में इस साल आग लगने की घटनाएं भी बहुत अधिक हुई हैं।
बीबीसी हिंदी की माने तो ब्राज़ील के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च ने अपने सैटेलाइट आंकड़ों में दिखाया है कि 2018 के मुकाबले इसी दरम्यान आग की घटनाओं में 85 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस साल के शुरुआती आठ महीने में ब्राज़ील के जंगलों में आग की 75,000 घटनाएं हुईं। साल 2013 के बाद ये रिकॉर्ड है। साल 2018 में आग की कुल 39,759 घटनाएं हुई थीं।
यूँ तो प्राकृतिक रूप से आग लगना किसी भी तरह के जंगलों की तरह वहां भी आम है लेकिन सैकड़ों पर्यावरणविद एवं प्रकृति के लिए कार्य करने वाली संस्थाओं की राय मौजूदा घटना पर एक सामान ही नजर आती है। वे इसके लिए बहुत हद तक बोलसोनारो की नीतियों को ही ज़िम्मेदार मानते हैं।
बोलसोनारो जब से सत्ता में आये हैं वे प्रकृति के इस वरदान को उनके देश के विकास में एक बड़ा अड़ंगा मानते हैं। लेकिन वो शायद यह भूल रहे हैं कि विकास के रथ का मार्ग अगर विनाश की गलियों से हो कर गुजरता है। तो भविष्य की बेहतरी के लिए समय रहते ही उस मार्ग को बदल देना चाहिए।
बोलसोनारो की पर्यावरण विरोधी नीतियों ने वहां की बड़ी-बड़ी कंपनियों को एवं स्थानीय लोगों को जंगल में तबाही मचाने की लगभग खुल्ली छूट दी है। वहां के किसान और लकड़ी के व्यापारियों ने भी इस घटना में उनका खूब योगदान दिया है। वैसे तो यह जंगल पहले से ही निर्वनीकरण का दंश झेल रहा है।
लेकिन यहाँ आग लगने के साथ ही यह कइयों प्राकृतिक और मानवीय कारणों से अब बहुत खतरे में हैं। मौजूदा हाल में यह खतरा इस कदर बढ़ गया है कि वहां का एक तिहाई भाग लगभग राख बन चुका है।
पर्यावरण के लिए कार्य करने वाली संस्थाओं को अब लगभग शक्ति विहीन कर दिया गया है और पर्यावरण संबधित उठने वाली हर एक आवाज को जैसे बिल्कुल कुचल दिया गया है। दर्जनों पर्यावरणीय संस्थाओं के (लाइसेंस) अनुमति पत्रों को ख़ारिज कर दिया गया है। पर्यावरण का संरक्षण करने वाली संस्थाओं का ही भक्षण करना यह प्रकृति के साथ एक भद्दा व्यवहार तो है ही साथ ही मनुष्य की घटिया एवं स्वार्थी प्रवृत्ति को सबके सामने इस तरह से भी रखता है, मानों प्रकृति के विनाश से ही विकास संभव है, या इससे बेहतर विकास का और कोई दूसरा विकल्प है ही नहीं।
ब्राज़ील के जंगलों में लगी आग से वहां के पारिस्थितिक तंत्र को बहुत अधिक नुकसान हुआ है। हज़ारों मूक जानवर बुरी तरह घायल हुए हैं और हज़ारों ही झुलस कर मृत पाए गए हैं। हज़ारों वृक्ष भी भीषण आग की आहुति में असमय काल के गाल में समा गए। यानि हालात इतने वीभत्स हो गए थे की उसे देख किसी पत्थर के भी आंसू छलक पड़े।
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ स्पेस रिसर्च के अध्यक्ष के द्वारा जब बोलसोनारो के लिए चेतावनी भरी रिपोर्ट में यह लिखा गया कि "जिस तरह से यह आग आगे बढ़ रही है, यह और भी ज्यादा फैलते रहेगी और हो सकता है के एक समय यह काबू में ही न आ सके।"
चेतावनी भरी यह रिपोर्ट जब मीडिया के सामने आई तो बोलसोनारो ने उस अध्यक्ष को ही अपने पद से बर्खास्त कर दिया। यही नहीं ब्राज़ील के "पर्यावरण प्रवर्तन निदेशालय" के सालाना बजट में भी लगभग 23 मिलियन डॉलर की कटौती कर दी गई। जिससे वहां के वृक्षों के भक्षण को बहुत अधिक बढ़ावा मिला है।
बीबीसी के अनुसार मौजूद आग की घटनाओं में कुछ राज्य जैसे, रोराइमा में 141%, एक्रे में 138%, रोंडोनिया में 115% और अमेज़ोनास में 81% तक की वृद्धि हुई है। गत वर्षों की तुलना में अमेज़न के जंगलों में आग लगने में करीब चौरासी फीसदी की दर से वृद्धि हुई है।
जबकि दक्षिणी हिस्से के मोटोग्रोसो डू सूल में आग की घटनाएं 114% बढ़ी हैं। अमेज़न बेसिन के अन्य देशों में भी इस साल आग की घटनाएं बढ़ी हैं। इसमें वेनेज़ुएला दूसरे नंबर पर है जहां आग की 26000 घटनाएं सामने आई हैं, जबकि आग की 17000 घटनाओं के साथ बोलीविया तीसरे नंबर पर है।
यूरोपीय संघ के कॉपर्निकस एटमास्फ़ियर मानिटरिंग सर्विस (कैम्स) के अनुसार जंगल में लगी आग का धुआं अटलांटिक कोस्ट तक फैल चुका है। यहां तक कि वहां से 2000 मील दूर साओ पाउलो का आसमान भी उस धुएं से भर गया है।
यानि हालात कुछ यूँ थे मानों दिन को ही रात हो गई हो। यह घटना अभी भी जारी है इस पर अभी भी पूरी तरह काबू नहीं पाया जा सका है। धुआँ ज्यादा होने से कइयों शहरों की विमानन सेवाएं भी प्रभावित हुई है। इस वक़्त वहां करीब 15,600 स्थान आग की चपेट में हैं और यह आग लगातार फैलती ही जा रही है। अब-तक करीब 80,630 वर्ग किमी का क्षेत्र आग की चपेट में आ गया है और आंकडों में बढ़ती आग के साथ लगातार वृद्धि हो रही है।
हाल में ही फ्रांस के बिअरित्ज शहर में हुए जी-7 समिति की बैठक में भी इस बार ब्राज़ील में लगी आग के विषय को जोर-शोर से उठाया गया साथ ही इसके लिए लंदन, बर्लिन, स्पेन और पेरिस में ब्राजील दूतावास के बाहर भी कइयों लोगों ने अमेजन में पर्यावरण बचाने को लेकर प्रदर्शन किए। यहाँ तक की फ्रांस और आयरलैंड ने दबाव बढ़ाते हुए स्पष्ट कह दिया कि ब्राजील के साथ तब-तक व्यापार सौदे को मंजूरी नहीं देंगे जब-तक अमेजन के जंगलों में लगी आग के लिए कुछ किया नहीं जाएगा।
अतः अन्य देशों में भी अपनी किरकिरी होते देख और जगह-जगह प्रदर्शन के दबाव में आकर बोलसोनारो को अग्निशमन के कार्य के लिए विशेष सेना को नियुक्त करना पड़ा और अन्य देश जो भी वहां की आग बुझाने में ब्राज़ील की मदद करना चाहते हैं, उसका स्वागत भी किया है।
हाल में वहां वर्षा होने से संसार भर को थोड़ी राहत जरूर मिली है और मौसम विभाग ने भी मौसम के ठन्डे बने रहने की उम्मीद जताई है। इसके साथ ही वहां बचाओ कार्य भी तेज़ी से चल रहा है। अन्य देश भी अमेज़न में फैली आग को लेकर बहुत ही चिंतित हैं, और उन्होंने ब्राज़ील से हर संभव मदद करने का अपना-अपना प्रस्ताव भी रखा है।
जी-7 समिति के सदस्यों द्वारा ब्राज़ील में अग्निशमन के कार्य हेतु लगभग 154 करोड़ रूपए साथ ही एयरक्राफ्ट भेजने की आर्थिक मदद करने की अपनी पेशकश की थी परंतु बोलसोनारो ने फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रोन से अपने मन मुटाव के चलते जी-7 देशों की आर्थिक सहायता की पेशकश को फ़िलहाल ठुकरा दिया है।
वहीं बोलीविया के राष्ट्रपति इवो मोरेलेस ने किसी भी प्रकार की आर्थिक मदद का स्वागत किया है। यहाँ यह गौरतलब है कि बोलीविया का अब-तक 9500 वर्ग किमी का क्षेत्र आग की चपेट में है। बोलीविया ने भी अपने 4 हज़ार सैनिक जवानों को अग्निशमन के कार्य में लगा दिया है।
बोलसोनारो को वहां के पर्यावरण संरक्षण के लिए विशेष कानून बनाने की बहुत आवश्यकता है एवं ऐसे सरकारी संगठन के गठन की भी जो स्वतंत्र रूप से पर्यावरणीय संरक्षण पर अपने निर्णय ले सके।
अंततः बोलसोनारो को अपनी पर्यावरण विरोधी नीतियों को तुरंत त्याग कर प्रकृति से मिले इस वरदान को आत्मसात करना चाहिए और दर्जनों पर्यावरण संस्थाओं एवं पर्यावरण तथा जंगल के लिए कार्य करने वाले लोगों पर लगाये गए अनुचित प्रतिबंधों को भी जितनी जल्दी हो सके हटा देना चाहिए और उन्हें पर्यावरण संरक्षण में तथा पर्यावण के साथ ही अपने देश के विकास की कल्पना करनी चाहिए।
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