इन्दोरी टू इंदौर

मेरे अत्यतं आत्मीय इंदौरी भाइयों , बहनों , मेरे मित्रों को मेरा यानि सौरभ दीक्षित (इन्दोरी) का सादर प्रणाम , प्रिय बंधुओं आज ये खत 21 अप्रैल 2020 को मैं अपने शहर के नाम समर्पित कर रहा हूँ ।

इस समय मैं अपने शहर में अपने निवास पर एकदम स्वस्थ हूँ , और यही आशा तथा प्रार्थना करता हूँ की आप भी स्वस्थ होंगे ।

प्रियजनों आज हमारा इंदौर जिस संकट की स्थिति से गुजर रहा है । जिस आपार पीड़ा का सामना कर रहा है । इससे तो यही लगता है मानों निश्चित ही हमारे हँसते खेलते शहर पर जाने कैसी कुदृष्टि सी पड़ गई है । 

ऐसा लगता है कि हम एक गहरी नींद में हों और एक बुरा सपना देख रहें हो । पर काश के ये सच में एक बुरा सपना ही होता, क्योंकि असलियत तो आज उस बुरे सपने से भी बुरी नजर आ रही है ।

कभी लोगों से सतत भरी रहने वाली सड़कों पर आज मातम सा सन्नाटा पसरा हुआ नज़र आ रहा है । युद्ध काल में भी कभी बंद न होने वाली भारतीय रेलवे के पहियें इस महामारी के प्रकोप से थम गए हैं । गलियों में घातक एकांत छाया रहता है ।

शहर के मुख्य स्थलों में दबदबा रखने वाले विजय नगर की चकाचौंध आज फीकी सी नजर आ रही है , पलासिया की नियमित गति रुक सी गई है , रीगल पर अब जैसे गांधी प्रतिमा ने भी मानों मास्क पहन लिया है । जाने कब से अपने राजवाड़े में कोई भी रैलियों का आयोजन नहीं हुआ है ।

यहाँ तक की बीते लगभग 70 - 80 वर्षों से चलने वाली रंगपंचमी की गैर तक यहाँ नहीं खेली गई है । रामनवमी और हनुमान जयंती के भंडारे नहीं हुए । रमजान के बाजार भी शायद ही सज सकेंगे । इस कमबख्त बीमारी ने मुझे मेरे दोस्तों से मिलने वाली जादू की झप्पी भी मुझसे दूर कर दी । और तो और किसी अपने की मृत्यु हो जाने पर , उसका अंतिम संस्कार भी देख पाना जैसे अब भाग्य में नहीं रह गया है ।

सराफा और 56 जैसी जगहों पर हमेशा जमा रहने वाले भुक्खड़ इन्दोरी आज घर की चार दिवारी में अपने साथ अपने कितने ही लोगों की जान को बचाए हुए हैं । हमारे
जोशी जी के दही बड़े , सराफा की शिकंजी और रात में मिलने वाले अदभुत भोज्य पदार्थ , जेल रोड़ के पानी पताशे , विजय चाट के चटपटी चाट , इन्दोरी पोहे-जलेबियाँ  , और तो और इंदोरियों के भोजन में अनिवार्य भोज्य पदार्थ " सेव " की , अल्पता सच में बहुत खल रही है । 

दोस्तों किसी विपदा आने पर अपने शहर को छोड़ जाने वालों लोगों पर मुझे गुस्सा तो आता है । लेकिन जब मैं उनकी विवशता देखता हूँ तो कुछ भी कहना शायद उचित नहीं समझता ।

आज हम अपने वीर योद्धाओं के पराक्रम पर उनका बहुत आभार व्यक्त करते हैं , हम अपने सफाई दूतों के , अपने पुलिस बल के और हर उस इंसान के जो हमें इस भीषण बाहरी माहौल से किसी ढाल की तरह हमारी रक्षा कर रहे हैं । 

इसके प्रतिकार में हमें क्या कहा गया है ? यही कि हम अपने घरों में रहें , सुरक्षित रहें । बहुत ही जरूरी कार्य से घर से बाहर निकले और निकले भी तो लोगों से 6 हाथ की दूरी बनाए रखें । किसी की मदद करना चाहते हैं तो बिना तस्वीर खीचें उनको भोजन दें ।

प्यारे मित्रों  सड़कों पर कई जानवर , श्वान आदि इंसानों पर ही निर्भर करते हैं । यहाँ यह हमारा दायित्व है कि यदि हम सक्षम हैं तो उनके लिए भी कुछ भोजन बना कर उन्हें समर्पित करें । 

शायद राज्य में सत्ता की डांवांडोल स्थिति के कारण समय रहते हमने महामारी की गंभीरता को भाँपने में देरी की । हमें यह मानना ही होगा की कहीं न कहीं हमसे चूक तो हुई है । यदि स्थिति को समय रहते भँपा लिया जाता तथा उस पर तुरंत कार्यवाही की जाती तो कम्युनिटी स्प्रैड का खतरा इंदौरियों पर शायद नहीं मंडराता ।

तो यह क्यों हुआ ? कैसे हुआ ?  इसकी पुख्ता जाँच जरूर होनी चाहिए जिससे भविष्य में हम इस तरह की गलतियों से स्वयं को , अपने शहर को , अपने राज्य को तथा , अपने देश को बचा सकें । 

दोस्तों परिस्थितियाँ चाहे कितना ही विपरीत क्यों न हो, हमने मिलकर उसका सामना किया है और इसी तरह हम आगे भी करते रहेंगे । अरे हमारी , इच्छा मात्र से हमने इंदौर को देश में , स्वच्छता में एक बार नहीं अपितु 3 बार प्रथम वरीयता का स्थान दिया है । अंगदान करने में भी यह शहर सबसे आगे रहा है । एक से बढ़ कर एक सूरमाओं की यह धरती निश्चित ही इस युद्ध में अपनी विजय का संखनाद करेगी । 

तालाबंदी का यह समय , विपरीत जरूर है लेकिन इसने प्रकृति को स्वास्थ्य होने का मौका जरूर दिया है । ओज़ोन छिद्र की क्षति पूर्ति बहुत तेज़ी से हो रही है । हमारी नदियों में मानों जैसे जान लौट आई है ।

यमुना के पानी से फिर घर का खाना बनाया जा सकता है । गंगा में फिर डॉल्फिन ठिठोलियाँ करती नजर आ रही है । सदैव वाहनों की ध्वनि सुनने वाले ये कर्ण , जब चिड़ियों की चहचहाहट सुनतें हैं तो प्रकृति का ये सौंदर्य कुछ ही पल में हमें सारे दिन की ऊर्जा से सराबोर कर देता है । सड़कों पर सदैव धूल से लदे रहने वे वृक्ष इस तरह हरिया गए हैं, जैसे उन्हें किसी ने चटक हरे रंग से रंग दिया है । बड़े शहरों में वायु प्रदूषण में भी बहुत कमी देखने को मिल रही है । 

दोस्तों क्या यह हमें सोचने पर विवश नहीं करता की हमनें कुछ तो गलत किया है ? अपनी प्रकृति व अपने पर्यावरण के साथ ? अपने-अपने जीवन में व्यस्त रह कर हमने , अपने आस-पास के माहौल को , तो जैसे जीना ही छोड़ दिया है । 

प्यारे मित्रों यही वो समय भी है जब हम हमारी गलतियों का पश्चताप , माँ प्रकृति के समक्ष कर सकते हैं । कुछ ऐसा सोच सकते हैं , जिससे आने वाले समय में हम पुनः उसे दूषित होने से बचा सकें । 


और अंत में यही कहना चाहूंगा कि मैं अभी लोक सेवा आयोग के लिए अध्ययनरत एक छात्र हूँ । रुपये या पैसों से आपकी मदद शायद न कर सकूँ । लेकिन मैं अपनी ओर से अपने जिस भी इन्दोरी भाई-बंधुओं को शारीरिक श्रम दे सकूँ , उनके काम आ सकूँ , उनकी मदद कर सकूँ ।

यहाँ तक की अगर , कोरोना वायरस की दवाई बनाने में या उसका परीक्षण करने में किसी शरीर की आवश्यकता हो तो बिना डरे मानवता को बचाने के लिए मैं अपने शरीर को हँसते हुए समर्पित कर देने को भी बिल्कुल तैयार हूँ । यहाँ मैं देश और दुनिया के उन सभी वीरों को श्रद्धांजलि भी अर्पित करता हूँ । जिन्होंने अपने प्राण , अपने कर्तव्यों पर न्यौछावर कर दिए ।

मित्रों इस महामारी से हमें सीख लेने की बहुत आवश्यक्ता है । यहाँ इस बीमारी ने फैलने के पहले न तो धर्म देखा न जात , न शोहरत देखी न औकात । तो फिर इंसानों में हमें इतनी असमानता क्यों नजर आती है ? इससे हमें क्या सीख मिलती है ?

हमारी सनातन संस्कृति में भी हमें दूर से ही प्रणाम (नमस्ते) करने , तथा घर में प्रवेश से पहले हाथ-पैर धुलवाए जाने तथा बहुत सी ऐसी प्रक्रियाएं जो हमें जाने अनजाने बहुत सी बीमारियों से बचाये रखती थी । आज समय के साथ तथा पश्चिमी संस्कृति को अपनाने के साथ , हमने हमारी उन सब प्रकियाओं को जैसे बिल्कुल भुला ही दिया है । 

इससे सबक लेते हुए आगे से हमें घर से (मास्क) पहन कर या गमछा डाल कर ही घरों से निकलना चाहिए । अपने आस-पास स्वच्छता का पूरा ध्यान रखना चाहिए । सड़कों पर थूकने आदि जैसी आदतों का पूरी तरह से त्याग कर देना चाहिए तथा इसके प्रति कानून व्यवस्था को भी उचित आदत न बन जाने तक सजग एवं कठोरता का रुख अपनाना चाहिए । 

मित्रों इन सब के बीच भी मुझे विश्वास है के जल्द ही हम सराफा पर फिर भुक्कड़ों की तरह खाने पर डटे रहेंगे । अपने 56 में 56 भोगों का स्वाद फिर से चखेंगे । पलासिया की गति फिर से लौट आएगी । विजय नगर की चकाचौंध से फिर हमारी आँखें चमक जाएगी । फिर अपने दोस्तों को हम गले लगाएंगे भगवा ध्वज लेकर हम जगह- जगह जय श्रीराम के गुण गाएंगे ।  तिरंगा ध्वज लेकर राजवाड़े पर फिर हम खुल कर जश्न मनाएंगे । हाँ इस बार लंगर हो या भण्डारा , हम साथ-साथ करवाएंगे ।

अपने मुस्लिम भाइयों के हाथों से हम जलपान करेंगे । गरीब रहेगा ही नहीं कोई जब मानवता का हम दान करेंगे । अहिल्या माई हमारे शहर की नजरें फिर उतारेगी । मुस्कुराएगी अपने बच्चों के साथ , शिव शम्भू की आरती उतारेगी । उद्यानों में फिर खिलखिलाएंगे बच्चे , फिर से हँस पड़ेगा अपना इंदौर , फिर मुस्कुराएगा इण्डिया । 

 "  जय हिंद  " " जय मल्हार "

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